चोटी की पकड़–84

मुन्ना ने सोचा, परदाफाश हुआ तो बुरी हालत होगी, रिश्वत दे दी जाएगी तो अभी मामला दबा रहेगा।


 कहा, "रानीजी जल्द आज-कल में रुपया देनेवाली हैं। आप लोग रानी के तरफदार रहिए।

 यह काम इसीलिए किया गया है। राजा के कान में बात पड़ जाएगी तो बाँसों पानी चढ़ेगा। 

मामला बहुत बढ़ेगा। नौकरियाँ जाएंगी। पुलिस के हाथ गया तो सजा की नौबत आएगी। हमी लोग बँधेंगे।

 रानी और राजा को कुछ नहीं होगा। संगठन रहेगा तो मजे में चलेंगे, क्या कहते हैं?"

"इससे अच्छी और कौन-सी बात है?"।

जटाशंकर ने भी खजांची की बात दुहरायी।

मुन्ना ने कहा, "जमादार, अब तुम चलो, उस सिपाही से मैं बातचीत कर लूँगी। यह बात हम तीनों की रही। रानी साहिबा से तुम मिल नहीं सकते।"

जमादार चलने को न हुए, फिर कुछ कहना चाहा, मुन्ना ने बीच में खुलकर कहा, "अब चलो जल्द, यह मालूम नहीं-ये रानी साहिबा के क्या हैं और होंगे?"

जटाशंकर चले। रास्ते पर सोचा, 'राजा को बीजक लेकर न दिखायें। पहले का हाल कहना होगा; नहीं मालूम, मामला पल्टा खाय। जाने दिया जाए।'

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